एक किसान ने ज़मींदार केे साथ दावत कैसे उड़ायी

उक्रेनी लोककथा

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एक बार की बात है एक ज़मींदार था जो अमीर तो था ही घमण्डी भी था। वह बहुत कम लोगों से मिलता-जुलता था। जहाँ तक किसानों की बात थी वह उन्हें इंसान ही नहीं मानता था, कहता कि उनसे बदबू आती है, उनसे मिट्‌टी की गन्ध आती है। उसने अपने नौकरों को हुक्म दे रखा था कि उनमें से कोई कहीं आसपास भी नज़र आ जाये तो उन्हें दूर खदेड़ दिया जाये।

एक दिन किसान इकट्‌ठा हुए और जमींदार के बारे में बातें करने लगे। एक ने कहा, ‘‘मैंने ज़मींदार को बहुत करीब से देखा वह मुझे खेत में मिला था।’’

दूसरे ने कहा, ‘‘मैंने कल चारदीवारी के उस पार देखा था, ज़मींदार अपनी बालकनी में कॉफी पी रहा था।’’ तभी तीसरा किसान जो उनमें सबसे ग़रीब था वहाँ आया और उनकी बातें सुनकर हँसने लगा।

‘‘अरे! यह तो कुछ नहीं है,’’ उसने कहा। ‘‘कोई भी ज़मींदार की चहारदीवारी के उस पार झाँक सकता है। अगर मैं चाहूँ तो मैं ज़मींदार के साथ दावत खा सकता हूँ।’’

दोनों किसानों ने जोर का ठहाका लगाया और कहा, ‘‘तुम और उसके साथ दावत करोगे? जैसे ही वह तुम्हें देखेगा बाहर खदेड़ देगा। घर के आसपास भी वह तुम्हेंं फटकने नहीं देगा।’’

दोनों किसान उस तीसरे किसान का मजाक उड़ाने लगे और उसको गालियाँ देने लगे।

वे उस पर चिल्लाये, ‘‘तुम झूठे और शेख़ीबाज हो।’’

‘‘मैं ऐसा नहीं हूँ।’’

‘‘ठीक है, अगर तुम जमींदार के साथ दावत करते हो तो हम तुम्हें गेहूँ की तीन बोरियाँ और दो बैल देंगे और अगर नहीं कर पाये तो जो हम कहेंगे वह तुम्हें करना होगा।’’

किसान ने जवाब में कहा, ‘‘ठीक है।’’

वह ज़मींदार के अहाते में पहुँचा। जैसे ही ज़मींदार के नौकरों ने उसे देखा, वे उसे बाहर खदेड़ने के लिए दौड़ पड़े।

‘‘ठहरो!’’ किसान ने कहा। “मेरे पास ज़मींदार के लिए एक खबर है।”

‘‘कौन सी खबर?’’

‘‘वह मैं ज़मींदार को ही बताउँगा, किसी और को नहीं।’’

फिर ज़मींदार के नौकर उसके पास गये और जो कुछ किसान ने कहा था उसके बारे में बताया।

ज़मींदार को बड़ी उत्सुकता हुई कि किसान उससे कुछ लेने नहीं बल्कि उसके लिए कोई खबर लाया है। उसने मन ही मन सोचा, क्या पता कोई काम की बात हो।

उसने अपने नौकरों को हुक्म दिया, ‘‘किसान को पेश करो।’’

नौकर किसान को अन्दर ले आये। ज़मींदार उसके पास खिसक आया और उससे पूछने लगा, ‘‘तुम क्या खबर लाये हो?’’

किसान ने नौकरों की ओर देखते हुए कहा, ‘‘मेरे मालिक, मैं आपके साथ अकेले में बात करना चाहता हूँ।’’

अब तक ज़मींदार की उत्सुकता पूरी तरह जाग उठी थी — ‘आखिर किसान उसे क्या बताना चाहता है?’ उसने नौकरों को वहाँ से जाने के लिए कहा।

जब वे दोनों अकेले रह गये तो किसान ने धीरे से कहा — ‘‘दयालु स्वामी मुझे बताइये कि घोड़े के सिर जितने बड़े सोने के एक टुकड़े की कीमत क्या होगी?’’ ज़मींदार ने पूछा, ‘‘तुम यह क्यों जानना चाहते हो?’’

‘‘इसकी एक वजह है।’’

ज़मींदार की आँखों में लालच टपकने लगा और उसके हाथ काँपने लगे।

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‘‘किसान यूँ ही मुझसे यह सवाल नहीं पूछ रहा है, उसे ज़रूर कोई खजाना मिला होगा।’’ उसने अपने आपसे कहा और वह किसान से जवाब उगलवाने की कोशिश करने लगा।

उसने फिर पूछा, ‘‘भले आदमी, मुझे बताओ तुम यह किसलिए जानना चाहते हो?’’ किसान ने गहरी साँस लेते हुए कहा, ‘‘ठीक है, अगर आप मुझे नहीं बताना चाहते तो रहने दीजिए। अब मैं जा रहा हूँ, मेरे रात का भोजन मेरा इंतज़ार कर रहा है।

ज़मींदार अपना घमण्ड भूल गया। साफ दिखायी दे रहा था कि वह लालच से काँप रहा है।

उसने मन ही मन सोचा, ‘‘मैं इस किसान को उल्लू बना दूँगा और उससे वह सोना ले लूँगा।’’ उसने कहा, ‘‘देखो भलेमानस, तुम्हें घर जाने की क्या जल्दी है? अगर तुम्हें भूख लगी है तो तुम मेरे साथ खाना खा सकते हो। जाओ सेवको, जल्दी करो, झटपट मेज लगाओ, और हाँ, वोदका लाना मत भूलना।’’

नौकरों ने जल्दी से मेज व्यवस्थित की और उस पर भोजन और शराब परोसी।

ज़मींदार किसान की आवभगत करने लगा। उसके सामने कभी एक व्यंजन रखता तो कभी दूसरा।

‘‘भरपेट खाओ भले आदमी, कोई लिहाज मत करो’’ उसने कहा।

किसान ने मना नहीं किया, उसने जी भरकर खाया। ज़मींदार उसकी थाली और गिलास भरता रहा।

जब किसान इतना डटकर खा चुका कि अब वह और नहीं खा सकता था तब ज़मींदार ने कहा, “अब जल्दी से जाओ और अपना सोने का टुकड़ा लाकर मुझे दे दो। मैं तुमसे बेहतर जानता हूँ कि उसे कैसे बेचना है, इसके लिए इनाम में तुम्हें दस रूबल मिलेंगे।’’

‘‘नहीं, मेरे मालिक मैं आपके लिए सोना नहीं ला पाउँगा।’’ किसान ने कहा।

‘‘क्यों नहीं?’’

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‘‘क्योंकि मुझे कोई सोना अभी तक मिला नहीं।’’

‘‘क्या! फिर तुम उसकी कीमत क्यों जानना चाहते थे?’’

‘‘केवल उत्सुकतावश।’’

ज़मींदार बहुत नाराज़ हो उठा। उसका चेहरा नीला पड़ गया और वह अपना पैर पटकते हुए चिल्लाया, ‘‘मूरख कहीं का, निकल जा यहाँ से!’’

किसान ने जवाब में यह कहा : ‘‘मेरे दयालु मालिक! मैं उतना भी मूर्ख नहीं हूँ जितना आप सोचते हैं, आपके खर्चे पर मैंने बढ़िया खाने का मजा उठाया, और साथ ही मैं गेहूँ की तीन बोरियाँ और दो गोल सींगों वाले बैलों की शर्त भी जीत गया। इसके लिए अकल चाहिए।”
यह कहते हुए वह वहाँ से चल दिया।

अनुवाद : गीतिका

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