अँगीठी के नीचे

लातविया की लोककथा

• विंत्सेन्त त्सुकला

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दादाजी हमेशा अँगीठी के पास ही बैठे रहते थे। उन्हें गरमी के दिनों में भी सर्दी लगती थी इसीलिए वह अपना सारा समय अँगीठी के पास ही बैठकर बिताते थे। साथ ही साथ वह अख़बार और कुछ किताबें भी पढ़ते रहते। उनकी सारी चीज़ों को उनके सभी बच्चों ने आपस में बाँट लिया था। अब दादाजी के पास कुछ एक चीज़ें ही बची रह गयी थीं। और उनमें से भी कुछ उनके नाते-पोती उठा ले गये। कोई भी ऐसा नहीं था जो उनकी देखभाल ठीक ढंग से करे।

उनके पास अक्सर यूज्का नाम का एक छोटा-सा लड़का आता। वह उनके भाई के बेटे का बेटा था। दोनों एक दूसरे से खूब मगन होकर बतियाते रहतेे। इस तरह दादाजी का समय कट जाता था। यूज्का अँगीठी में लकड़ियाँ डालने में भी दादाजी की मदद करता। यह देखकर दादाजी की आँखें भर आतीं। दादाजी अक्सर ही एक कविता गुनगुनाया करते थे —

मेरे पास था भी जो कुछ, बाकी रहा न उसमें अब कुछ। जो कुछ रह गया उससे पहले का, बस दूँ केवल अपने प्रिय को कभी न दूँ मैं और किसी को।

उनके बच्चे हँसते और उनसे पूछते — ‘‘पिताजी, आपने तो सारा सामान पहले ही दे दिया है, अब आपके पास भला क्या बचा है?’’ उनकी बहुएँ भी मजाक उड़ातीं — ‘‘पिताजी के पास बस एक अँगीठी ही है और तो कुछ है नहीं। फिर कौन-सी चीज़ देने की बात करते हैं?’’

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एक दिन दादाजी ने हमेशा के लिए आँख मूँद ली। उनके पास जो कुछ भी बचा-खुचा रह गया था, उसे भी उनके बच्चों ने आपस में बाँट लिया। सामान का बँटवारा करते समय उन्हें यूज्का की याद आयी, वह अँगीठी के पास चुपचाप खोया सा बैठा था। वह समझ नहीं पा रहा था कि किन चीज़ों का बँटवारा हो रहा है और क्यों हो रहा है? सबने यूज्का से कहा — ‘‘हम जानते हैं कि तुम दादाजी को बहुत प्यार करते थे। तुम हमेशा दादाजी के साथ इसी अँगीठी के पास बैठकर पढ़ते थे। इसलिए यह अँगीठी और उनकी पुस्तकें तुम अपने पास रख लो।’’

यूज्का दादाजी के बारे में सोच रहा था, उसे जवाब देते न बना। दादाजी के बेटों ने वकील को बुलाकर अँगीठी यूज्का के नाम करवा दी। अँगीठी निकालने के लिए उन्होंने मिस्तरी बुलाकर काम शुरू करवा दिया। तली में उन्हें कुछ सख़्त उभरी चीज़ें दिखाई पड़ीं। जमीन खोदी गयी तो सोने के सिक्कों से भरा एक थैला मिला। उसमें दादाजी को अच्छे कामों के लिए मिला एक मेडल भी था। उसके साथ एक पत्र भी था जिसमें यह लिखा हुआ था — मुझे हर समय सर्दी लगती है। यह सब कुछ उसी का होगा जिसे सर्दी लगती है। जो मेरी अँगीठी का सम्मान करता है उसे ही यह अँगीठी मिलेगी और उसी का यह थैला भी होगा। — दादाजी

घटनास्थल पर वकील साहब भी थे। उन्होंने उस पत्र को पढ़ा और उस पर मोहर लगा दी ताकि यूज्का से कोई उसका थैला न छीन सके। सबने यह मान लिया था कि यूज्का को अँगीठी और किताबें देकर सस्ते में निपट जायेंगे। पर अब सोने के सिक्कों से भरा थैला हाथ से निकलता देखकर वे बहुत मायूस हुए।

अनुवाद : शाकम्भरी

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